Saturday, 25 June 2011

बुंदेलखंड ही नही संपूर्ण भारत ऐसे महान व्यक्तित्व के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेगा


बुंदेलखंड के वीर छत्रसाल

सत्ता और संघर्ष की बढ़ी-चढ़ी घटनाओं से इतिहास भरा पड़ा है, परंतु स्वतंत्रता और सृजन के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले विरले ही हुए हैं। मध्यकालीन भारत में विदेशी आतताइयों से सतत संघर्ष करने वालों में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और बुंदेल केसरी छत्रसाल के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, परंतु जिन्हें उत्तराधिकार में सत्ता नहीं वरन ‘शत्रु और संघर्ष’ ही विरासत में मिले हों, ऐसे बुंदेल केसरी छत्रसाल ने वस्तुतः अपने पूरे जीवनभर स्वतंत्रता और सृजन के लिए ही सतत संघर्ष किया। शून्य से अपनी यात्रा प्रारंभ कर आकाश-सी ऊंचाई का स्पर्श किया। उन्होंने विस्तृत बुंदेलखंड राज्य की गरिमामय स्थापना ही नहीं की थी, वरन साहित्य सृजन कर जीवंत काव्य भी रचे। छत्रसाल ने अपने 82 वर्ष के जीवन और 44 वर्षीय राज्यकाल में 52 युद्ध किये थे। शौर्य और सृजन की ऐसी उपलब्धि बेमिसाल है-


‘‘इत जमना उत नर्मदा इत चंबल उत टोंस।
छत्रसाल से लरन की रही न काह होंस।’’

वीरों और हीरोंवाली माटी के इस लाड़ले सपूत ने कलम और करवाल को एक-सी गरिमा प्रदान की थी।
मूल ऊर्जा का केंद्रः ओरछा बुंदेलखंड में सन 1531 से गढ़ कुंडार के उतरांत ओरछा ही राज्य के रूप मंे मूल ऊर्जा केंद्र रहा है। हेमकर्ण की वंश परंपरा में सन 1501 में ओरछा में रुद्रप्रताप सिंह राज्यारूढ़ हुए, जिनके पुत्रों में ज्येष्ठ भारतीचंद्र 1539 में ओरछज्ञ के राजा बने तब बंटवारे में राव उदयजीत सिंह को महेबा (महोबा नहीं) का जागीरदार बनाया गया, इन्ही की वंश परंपरा में चंपतराय महेबा गद्दी पर जिन परिस्थितियों में आसीन हुए उसके बारे में लाल कवि ने ‘छत्रप्रकाश’ में कहा है-
‘‘प्रलय पयोधि उमंग में ज्यों गोकुल जदुदाय
त्यों बूड़त बुंदेल कुल राख्यों चंपतराय।’’
किंतु पूरे जीवनभर विदेशी मुगलों से संघर्ष करते हुए इस रणबांकुरे बुंदेला को अपने ही विश्वासघातियों के कारण सन 1661 में अपनी वीरांगना रानी लालकुंआरि के साथ आत्माहुति देनी पड़ी।

इतिहास पुरुषः छत्रसाल

चंपतराय जब समय भूमि मे ंजीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे उन्हीं दिनों ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1707 (सन 1641) को वर्तमान टीकमगढ़ जिले के लिघोरा विकास खंड के अंतर्गत ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विंध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में इतिहास पुरुष छत्रसाल का जन्म हुआ। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। वनभूमि की गोद में जन्में, वनदेवों की छाया में पले, वनराज से इस वीर का उद्गम ही तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ।
पांच वर्ष में ही इन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा हेतु अपने मामा साहेबसिंह धंधेर के पास देलवारा भेज दिया गया था। माता-पिता के निधन के कुछ समय पश्चात ही वे बड़े भाई अंगद राय के साथ देवगढ़ चले गये। बाद में अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या देवकुंअरि से विवाह किया।
जिसने आंख खोलते ही सत्ता संपन्न दुश्मनों के कारण अपनी पारंपरिक जागीर छिनी पायी हो, निकटतम स्वजनों के विश्वासघात के कारण जिसके बहादुर मां-बाप ने आत्महत्या की हो, जिसके पास कोई सैन्य बल अथवा धनबल भी न हो, ऐसे 12-13 वर्षीय बालक की मनोदशा की क्या आप कल्पना कर सकते हैं? परंतु उसके पास था बुंदेली शौर्य का संस्कार, बहादुर मां-माप का अदम्य साहस और ‘वीर वसुंधरा’ की गहरा आत्मविश्वास। इसलिए वह टूटा नहीं, डूबा नहीं, आत्मघात नहीं किया वरन् एक रास्ता निकाला। उसने अपने भाई के साथ पिता के दोस्त राजा जयसिंह के पास पहुंचकर सेना में भरती होकर आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया।
राजा जयसिंह तो दिल्ली सल्तनत के लिए कार्य कर रहे थे अतः औंरगजेब ने जब उन्हें दक्षिण विजय का कार्य सौंपा तो छत्रसाल को इसी युद्ध में अपनी बहादुरी दिखाने का पहला अवसर मिला। मइ्र 1665 में बीजापुर युद्ध में असाधारण वीरता छत्रसाल ने दिखायी और देवगढ़ (छिंदवाड़ा) के गोंडा राजा को पराजित करने में तो छत्रसाल ने जी-जान लगा दिया। इस सीमा तक कि यदि उनका घोड़ा, जिसे बाद में ‘भलेभाई’ के नाम से विभूषित किया गयाउनकी रक्षा न करता तो छत्रसाल शायद जीवित न बचते पर इतने पर भी जब विजयश्री का सेहरा उनके सिर पर न बांध मुगल भाई-भतीजेवाद में बंट गया तो छत्रसाल का स्वाभिमान आहत हुआ और उन्होंने मुगलों की बदनीयती समझ दिल्ली सल्तनत की सेना छोड़ दी।
इन दिनों राष्ट्रीयता के आकाश पर छत्रपति का सितारा चमचमा रहा था। छत्रसाल दुखी तो थे ही, उन्होंने शिवाजी से मिलना ही इन परिस्थितियों में उचित समझा और सन 1668 में दोनों राष्ट्रवीरों की जब भेंट हुई तो शिवाजी ने छत्रसाल को उनके उद्देश्यों, गुणों और परिस्थितियेां का आभास कराते हुए स्वतंत्र राज्य स्थापना की मंत्रणा दी एवं समर्थ गुरु रामदास के आशीषों सहित ‘भवानी’ तलवार भेंट की-
करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
दौर देस मुगलन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करि हो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषंे।
शिवाजी से स्वराज का मंत्र लेकर सन 1670 में छत्रसाल वापस अपनी मातृभूमि लौट आयी परंतु तत्कालीन बुंदेल भूमि की स्थितियां बिलकुल मिन्न थीं। अधिकाश रियासतदार मुगलों के मनसबदार थे, छत्रसाल के भाई-बंधु भी दिल्ली से भिड़ने को तैयार नहीं थे। स्वयं उनके हाथ में धन-संपत्ति कुछ था नहीं। दतिया नरेश शुभकरण ने छत्रसाल का सम्मान तो किया पर बादशाह से बैर न करने की ही सलाह दी। ओरछेश सुजान सिंह ने अभिषेक तो किया पर संघर्ष से अलग रहे। छत्रसाल के बड़े भाई रतनशाह ने साथ देना स्वीकार नहीं किया तब छत्रसाल ने राजाओं के बजाय जनोन्मुखी होकर अपना कार्य प्रारंभ किया। कहते हैं उनके बचपन के साथी महाबली तेली ने उनकी धरोहर, थोड़ी-सी पैत्रिक संपत्ति के रूप में वापस की जिससे छत्रसाल ने 5 घुड़सवार और 25 पैदलों की छोटी-सी सेना तैयार कर ज्येष्ठ सुदी पंचमी रविवार वि.सं. 1728 (सन 1671) के शुभ मुहूर्त में शहंशाह आलम औरंगजेब के विरूद्ध विद्रोह का बिगुल बजाते हुए स्वराज्य स्थापना का बीड़ा उठाया।

संघर्ष का शंखनाद

छत्रसाल की प्रारंभिक सेना में राजे-रजवाड़े नहीं थे अपितु तेली बारी, मुसलमान, मनिहार आदि जातियों से आनेवाले सेनानी ही शामिल हुए थे। चचेरे भाई बलदीवान अवश्य उनके साथ थे। छत्रसाल का पहला आक्रमण हुआ अपने माता-पिता के साथ विश्वासघात करने वाले सेहरा के धंधेरों पर। मुगल मातहत कुंअरसिंह को ही कैद नहीं किया गया बल्कि उसकी मदद को आये हाशिम खां की धुनाई की गयी और सिरोंज एवं तिबरा लूट डाले गये। लूट की सारी संपत्ति छत्रसाल ने अपने सैनिकों में बांटकर पूरे क्षेत्र के लोगों को उनकी सेना में सम्मिलित होने के लिए आकर्षित किया। कुछ ही समय में छत्रसाल की सेना में भारी वृद्धि होने लगी और उन्हेांने धमोनी, मेहर, बांसा और पवाया आदि जीतकर कब्जे में कर लिए।
ग्वालियर-खजाना लूटकर सूबेदार मुनव्वर खां की सेना को पराजित किया, बाद में नरवर भी जीता। सन 1671 में ही कुलगुरु नरहरि दास ने भी विजय का आशीष छत्रसाल को दिया।
ग्वालियर की लूट से छत्रसाल को सवा करोड़ रुपये प्राप्त हुए पर औरंगजेब इससे छत्रसाल पर टूट-सा पड़ा। उसने सेनपति रणदूल्हा के नेतृत्व में आठ सवारों सहित तीस हजारी सेना भेजकर गढ़ाकोटा के पास छत्रसाल पर धावा बोल दिया। घमासान युद्ध हुआ पर दणदूल्हा (रुहल्ला खां) न केवल पराजित हुआ वरन भरपूर युद्ध सामग्री छोड़कर जन बचाकर उसे भागना पड़ा। इस विजय से छत्रसाल के हौसले काफी बुलंद हो गये।
सन 1671-80 की अवधि में छत्रसाल ने चित्रकूट से लेकर ग्वालियर तक और कालपी से गढ़ाकोटा तक प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
सन 1675 में छत्रसाल की भेंट प्रणामी पंथ के प्रणेता संत प्राणनाथ से हुई जिन्होंने छत्रसाल को आशीर्वाद दिया-
छत्ता तोरे राज में धक धक धरती होय
जित जित घोड़ा मुख करे तित तित फत्ते होय।

बुंदेले राज्य की स्थापना

इसी अवधि में छत्रसाल ने पन्ना के गौड़ राजा को हराकर, उसे अपनी राजधानी बनाया। ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत 1744 की गोधूलि बेला में स्वामी प्राणनाथ ने विधिवत छत्रसाल का पन्ना में राज्यभिषेक किया। विजय यात्रा के दूसरे सोपान में छत्रसाल ने अपनी रणपताका लहराते हुए सागर, दमोह, एरछ, जलापुर, मोदेहा, भुस्करा, महोबा, राठ, पनवाड़ी, अजनेर, कालपी और विदिशा का किला जीत डाला। आतंक के मारे अनेक मुगल फौजदार स्वयं ही छत्रसाल को चैथ देने लगे।
बघेलखंड, मालवा, राजस्थान और पंजाब तक छत्रसाल ने युद्ध जीते। परिणामतः यमुना, चंबल, नर्मदा और टोंस मे क्षेत्र में बुंदेला राज्य स्थापित हो गया।
सन 1707 में औरंगजेब का निध्न हो गया। उसके पुत्र आजम ने बराबरी से व्यवहार कर सूबेदारी देनी चाही पर छत्रसाल ने संप्रभु राज्य के आगे यह अस्वीकार कर दी।
महाराज छत्रसाल पर इलाहाबाद के नवाब मुहम्मद बंगस का ऐतिहासिक आक्रमण हुआ। इस समय छत्रसाल लगभग 80 वर्ष के वृद्ध हो चले थे और उनके दोनों पुत्रों में अनबन थी। जैतपुर में छत्रसाल पराजित हो रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में उन्हेांने बाजीराव पेशवा को पुराना संदर्भ देते हुए सौ छंदों का एक काव्यात्मक पत्र भेजा जिसकी दो पंक्तियां थीं
जो गति गज और ग्राह की सो गति भई है आज बाजी जात बंुदेल की राखौ बाजी लाज।
फलतः बाजीराव की सेना आने पर बंगश की पराजय ही नहीं हुई वरन उसे प्राण बचाकर अपमानित हो, भागना पड़ा। छत्रसाल युद्ध में टूट चले थे, लेकिन मराठों के सहयोग से उन्हेांने कलंक का टीका सम्मान से पोंछ डाला।
यहीं कारण था छत्रसाल ने अपने अंतिम समय में जब राज्य का बंटवारा किया तो बाजीराव को तीसरा पुत्र मानते हुए बंुदेलखंड झांसी, सागर, गुरसराय, काल्पी, गरौठा, गुना, सिरोंज और हटा आदि हिस्से के साथ राजनर्तकी मस्तानी भी उपहार में दी। कतिपय इतिहासकार इसे एक संधि के अनुसार दिया हुआ बताते हैं पर जो भी हो अपनी ही माटी के दो वंशों, मराठों और बुंदेलों ने बाहरी शक्ति को पराजित करने में जो एकता दिखायी, वह अनुकरणीय है।
छत्रसाल ने अपने दोनों पुत्रों ज्येष्ठ जगतराज और कनिष्ठ हिरदेशाह को बराबरी का हिस्सा, जनता को समृद्धि और शांति से राज्य-संचालन हेतु बांटकर अपनी विदा वेला का दायित्व निभाया। राज्य संचालन के बारे में उनका सूत्र उनके ही शब्दों मेंः

राजी सब रैयत रहे, ताजी रहे सिपाहि
छत्रसाल ता राज को, बार न बांको जाहि।
यही कारण था कि छत्रसाल को अपने अंतिम दिनों में वृहद राज्य के सुप्रशासन से एक करोड़ आठ लाख रुपये की आय होती थी। उनके एक पत्र से स्वष्ट होता है कि उन्होंने अंतिम समय 14 करोड़ रुपये राज्य के खजाने में (तब) शेष छोड़े थे। प्रतापी छत्रसाल ने पौष शुक्ल तृतीया भृगुवार संवत् 1788 (दिसंबर 1731) को छतरपुर (नौ गांव) के निकट मऊ सहानिया के छुवेला ताल पर अपना शरीर त्यागा और विंध्य की अपत्यिका में भारतीय आकाश पर सदा-सदा के लिए जगमगाते सितारे बन गये।
छत्रसाल की तलवार जितनी धारदार थी, कलम भी उतनी ही तीक्ष्ण थी। वे स्वयं कवि तो थे ही कवियों का श्रेष्ठतम सम्मान भी करते थे। अद्वितीय उदाहरण है कि कवि भूषण के बुंदेलखंड में आने पर आगवानी में जब छत्रसाल ने उनकी पालकी में अपना कंधा लगा दिया तो भूषण कह उठे -
और राव राजा एक चित्र में न ल्याऊं-
अब, साटू कौं सराहौं, के सराहौं छत्रसाल को।।

बुंदेलखंड ही नही संपूर्ण भारत ऐसे महान व्यक्तित्व के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेगा।

Friday, 24 June 2011

Thursday, 23 June 2011

Indian cabinet clears Bundelkhand package

Indian cabinet clears Bundelkhand package

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20 November 2009
 
Bundelkhand region in India has been reeling under drought for quite some time now. The central government’s special drought mitigation package of more than Rs 70 billion for the next three years promises to bring relief to the people.
New Delhi: The Union Cabinet on Thursday approved a Rs 7,277 crore Drought Mitigation Special Package for the integrated development of the drought-hit Bundelkhand region in Uttar Pradesh and Madhya Pradesh from 2009 to 2010.
The package covers seven districts of Uttar Pradesh (Banda, Chitrakoot, Hamirpur, Jalaun, Jhansi, Lalipur and Mahoba) and six districts of Madhya Pradesh (Chhatarpur, Damoh, Datia, Panna, Sagar and Tikamgarh).
Congress general secretary Rahul Gandhi has been pressing for such a dispensation for the region.
Under the package, the main strategy will be optimisation of water resources through rainwater harvesting and proper utilisation of the river systems.
Intensive and diversified agriculture will be promoted for gain in productivity of crops, besides higher sown area in the kharif season. Animal husbandry and dairy activities will be expanded as an ancillary activity to enhance farmers’ income.
The plans proposed under the package are estimated to cost Rs 7,266 crore over three years.
Part of the cost will be met by way of converging resources from the ongoing Central government programmes and schemes.
To meet the gaps in the availability of financial resources and give a thrust to the drought mitigation package, Rs 3,450 crore in additional assistance to will be provided to the two States.
The two States will identify their agencies to draw up the project proposals.
To monitor the implementation, a monitoring group will be constituted, with the Members, Planning Commission in charge of the two States as chairperson and co-chairperson.
The Secretaries of the line departments concerned, the CEO of the National Rainfed Authority and the Chief Secretaries of the two States will be members.
The National Rainfed Authority will visit the area periodically to apprise the monitoring group of the progress.
 
Source : The Hindu

बुंदेलखंड पैकेज में मिली राशि में से 522 करोड़ से अधिक राशि खर्च


योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने कार्यों की प्रगति को सराहा
भोपाल (एमपी मिरर)। बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता के रूप में विभिन्न समयावधि में मिले 966.51 करोड़ में से अभी तक 522 करेड़ 22 लाख रूपये व्यय हो चुके हैं। यह कुल आवंटन का 54 प्रतिशत है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष एम.एस. अहलूवालिया ने किये जा रहे कार्यों का मौके पर, जायजा लिया और कार्यों की प्रगति की सराहना भी की है।

बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत प्राप्त राशि में से दस प्रतिशत व्यय होने संबंधी जानकारियों को भ्रामक बताते हुए अधिकारिक रूप से यह जानकारी दी गई है कि यह सत्य नहीं है। गौरतलब है कि एकमुश्त प्राप्त न होकर अलग-अलग समय में आवंटन प्राप्त होने के बावजूद राज्य सरकार ने कार्यों की न केवल योजना बनाई बल्कि उसे भलीभाँति क्रियान्वित भी किया है। रूपये 270 करोड़ की राशि तो मई माह में ही मिली है जिसके कार्य प्रारंभ भी हो गए हैं। इसी तरह 100 करोड़ रूपये तो इसी माह प्राप्त हुए हैं। इस राशि के कार्य भी शीघ्र प्रारंभ किये जा रहे हैं।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने हाल ही में पैकेज के अंतर्गत संचालित जल संसाधन, वन और पशुपालन विभागों के कार्यों का निरीक्षण कर कार्यों की प्रगति की सराहना की है।
इन तथ्यों के प्रकाश में यह कहना सही नहीं है कि राज्य शासन पैकेज पर अमल और प्राप्त राशि के समय पर उपयोग के प्रति गंभीर नहीं है। इसके विपरीत बुंदेलखण्ड पैकेज के क्रियान्वयन को लेकर राज्य सरकार पूरी तरह गंभीर है।

पहली बारिश ने बुंदेलखंड पॅकेज की पोल खोली


बुंदेलखंड पॅकेज की राशी से पन्ना जिले में निर्मित तीन तालाब और एक टैंक बरसात की पहली ही झाड़ी में बह गए. जिले से करीब 14  किलोमीटर की दूरी पर झलाई ग्राम के पास उत्तर वन मंडल की सामाजिक वानिकी ईकाई रेंज द्वारा तीनो तालाबो का निर्माण कराया गया था. पहला तालाब जो  झलाई ग्राम के पास ही बनाया गया है जिसमे बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एवं भाजपा जिलाध्यक्ष के द्वारा भूमिपूजन एवं शिलान्यास किया गया था जिसकी लागत उस भूमि पूजन बोर्ड के अनुसार 7 .10  लाख है.
ग्राम के पास इस तालाब में वन विभाग स्टोरेज तालाब डेम बनाने की बात बताई गई है जो पहली बरसात में ही मौके पर आज दो जगह से टूट चूका  है.
दूसरा तालाब जिसका उद्घाटन कृषि राज्य मंत्री वृजेन्द्र प्रताप सिंह  द्वारा किया गया था जिसका बोर्ड भी टूट चूका  है. वही इस तालाब में भी वेस्ट वियर के पास से पानी अपने बहाव में बहा ले गया लेकिन इस तालाब को विभागीय अधिकारी खुद के द्वारा तोड़ने की बात बता रहे है.
उत्तर वन मंडल के एस डी ओ एस एन सिंह का कहना है की तालाब को बचाने के लिए वेस्ट वियर के पास से तालाब को तोड़कर पानी निकाला है लेकिन मौके पर तो जो देखने में नजर आया है उससे लगता है की जैसे तालाब खुद टूटा हो.
वही ग्रामीणों का भी कहना है की तालाब अपने आप टूटा है. पिचिंग में जो पत्थर लगाया गया है उसके बारे में गाँव वालो का कहना है की तालाब के नीचे बनी खखरी के पत्थरों को ही इसमें उपयोग किया गया है.
 तीसरे तालाब  में विधायक राजेश वर्मा का बोर्ड लगा है जिसकी लागत 8 .75  लाख बताई गई है. यह तालाब दूसरे से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर ही है. तीनो तालाब क्रमशः एक दुसरे से एक-एक किलोमीटर की दूरी पर बनाए गए है.
इस तीसरे तालाब में मिट्टी की पार बनाई गई है पिचिंग नहीं हुई है. पार दो जगह से पानी के बहाव से बह गई.

उत्तर वन मंडल के अधिकारी अमित दुबे का कहना है की हमने 38  स्टोरेज डेम तथा 150  परकोलेशन टैंक बनाए है जो यह तालाब टूटे है यह मात्र 4 -5  प्रतिशत क्षति मानी जा सकती है. वह भी पिछले दो दिनों से जो वर्षा हो रही है आज तक 140  मिलीमीटर वर्षा हुई है. जो पन्ना जिले की औसत वर्षा  की 15  प्रतिशत पहली वर्षा ही इतनी हो गई इस कारण से क्षति हुई है. इसमें टेक्नीकल फाल्ट  नहीं है न ही विभागीय सिस्टम का फा्ट  है शेष जाँच के बाद ही पता चलेगा की कारण क्या है?
इन्होने भी एक ही तालाब के फूटने की बात स्वीकार की है क्योकि इनके मातहत एस डी ओ एस एन सिंह ने बताया है की दुसरे तालाब जिसका उद्घाटन मंत्री द्वारा किया गया था उसको तो वेस्ट वियर के पास से पानी निकलकर तालाब बचने की बात बताई जा रही है वही तीसरे तालाब में तो विभाग के मुखिया अमित  दुबे सहित आला अधिकारियो का कहना है  की यहाँ तो काम ही  नहीं शुरू किया गया था लेकिन गौरतलब यह है की मौके पर तालाब की पार बन चुकी थी जो दो जगह से पानी  के तेज बहाव के कारण बह गई है विभाग भले ही काम शुरू न होने की बात कह रहा हो

गौरतलब है की अमझिरिया गाँव के पास भी एक परकोलेशन टैंक टूटने की बात भी विभाग ने स्वीकार की है लेकिन इसके टूटने  का कारण कुछ दूसरा ही बताया जा रहा है. इनका   कहना  है की इसमें जो पानी की आवक थी शायद इसका अंदाजा सही ढंग से नहीं लग पाया और पानी की आवक ज्यादा होने की वजह से यह परकोलेशन टैंक टूट गया. इसकी अनुआनित लागत लगभग 1 .50  लाख रूपये बताई गई है.
यह दासता इन डेमो की तथा परकोलेशन टैंक की पहली बारिश में ही हो गयी. यह तो जाँच के बाद ही पता लगेगा की बास्ताविकता  में तकनीकी गलती क्या है. लेकिन बुंदेलखंड पॅकेज के द्वारा नवनिर्मित झलाई ग्राम के पास तीन तालाब तथा अमझिरिया के पास एक परकोलेशन टैंक पहली बारिश में ही फूट गए है. इस सम्बन्ध में सामजिक वानिकी के वन परिक्षेत्र अधिकारी पटेल ने कुछ भी कहने से इनकार किया.